April 19, 2009

क्या करे?

दोपहर की गर्मी मे
यूँ ही अकेला मन, क्या करे?

अलसाई सी सोच, थकी सी,
नींद को न छोड़ती पलकें,
पसीने से तर बदन
बिना कुछ किए, क्या करे?

नमी को तरसते होठ, प्यासे
बे-इन्तेहाँ रौशनी से घिरा
वीरानों का अन्धेरा
बसना चाहे तो क्या करे?

शब्दों की लडियां,
गर न बने कविता, क्या करे?

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