June 23, 2009

क्या करोगे जानकर

मुक्कदर से लड़ने का जोश मुझमे भी था
फिर जाना की वक्त भी हथियार रखता है
अंजाम-ऐ-ज़ंग क्या हुआ, क्या करोगे जानकर

बोता हर किसान अपनी फसल अरमानों से है
फिर मौसम भी होता है, पानी और पसीना भी
किस खेत में क्या फला, क्या करोगे जानकर

उनके जिस्म का हर मोड़ जानती हैं ये उंगलियाँ
उनकी खुशबू से भरपूर अब भी हैं ये उंगलियाँ
किसने किसको कहाँ छुआ, क्या करोगे जानकर

मौसम का मिजाज़ बदलते देर नही लगती
कितने बादल परछाई दिखा कर उड़ जाते हैं
वो फिर जाकर कहाँ बरसे, क्या करोगे जानकर

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