March 09, 2010

ये क्या कम है

ये क्या कम है
की अब तनहा नहीं होते कभी
तेरी यादें और हम हैं

मौसम चंचल है
रिमझिम बरस पड़ता है कभी
आखें इस वजह नम हैं

ख्वाब बंजारा है
यूँ ही आवारा भटकता है कभी
बस इसलिए नींदें कम हैं

वक़्त तो राही है
ये मेरे रोके से रुका है कभी
रुके हुए तो बस हम हैं

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