July 01, 2010

हवा कहाँ चली

खुशबू समेटते हुए हवा कहाँ चली
मौसम बदलते हुए हवा कहाँ चली

ख़्वाबों का पिटारा पलकों पे उठाये
उम्मीदों के रास्ते हवा कहाँ चली

पहचाने से चेहरे यादों से चुनकर
राहों पे मिलाती हवा कहाँ चली

एक बच्चे की हंसी परचम बनाये
ग़म को मिटाती हवा कहाँ चली

घरोंदों में बैठे अरमानों के पंछी
उन्हें साथ उड़ाते हवा कहाँ चली