October 25, 2010

एहसास

खुल के जीने का एहसास क्या था
तेरे साथ होने का एहसास क्या था

तुझे भूल कर अगर मैं खुश हूँ
तो तुझे पाने का एहसास क्या था

तेरे ख़त जलकर ख़त्म हो जाते
तो उन्हें पढने का एहसास क्या था

जो मयखाने में गुजरी शाम आवारा
तो तेरे इश्क का एहसास क्या था

ज़माने हँसे मुझ पर तो ग़म क्या
तेरे मुस्कुराने का एहसास क्या था

दबे हुए तकिये मे अब भी कुछ ख्वाब
उन्हें संग देखने का एहसास क्या था

No comments:

Post a Comment